किसान पर शायरी, कोट्स और स्टेटस |Shayari & Status on Farmers
हेलो फ्रेंड्स। आज हम इस पोस्ट में लेकर आये है किसान पर शायरी। किसान जिसे हम अन्नदाता भी कहते है वह हमारी प्रकृति से भी सीधा सम्बन्ध रखता है। वह यहाँ अपनी कुछ शिकायतों को शायरी के जरिये बयान कर रहा है। तो चलिए किसान की जीवनी को शायरी के जरिये पढ़ते है।
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,
सूखे कुएँ तुम्हारा इम्तहान बाकी है,
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उनकी आखों में अब तक ईमान बाकी है,
बादलों बरस जाना समय पर इस बार,
किसी का मकान गिरवी तो किसी का लगान बाकी है।
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,
सियासत अपनी चालों से कब तक कृषक को छलता रहेगा।
छत टपकती हैं,
उसके कच्चे घर की,
फिर भी वो कृषक करता हैं दुआ बारिश की।
मत मारो गोलियो से मुझे,
मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ,
मेरी मौत कि वजह यही हैं,
कि मैं पेशे से एक किसान हूँ।
जिसकी आँखो के आगे,
किसान पेड़ पे झूल गया,
देख आईना तू भी बन्दे,
कल जो किया वो भूल गया।
किसान की आह जो दिल से निकाली जाएगी,
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी।
उन घरो में जहाँ,
मिट्टी के घड़े रहते हैं,
कद में छोटे हो,
मगर लोग बड़े रहते हैं।
भगवान का सौदा करता हैं,
इंसान की क़ीमत क्या जाने?
जो “धान” की क़ीमत दे न सके,
वो “जान ” की क़ीमत क्या जाने?
मर रहा सीमा पर जवान और खेतों में किसान,
कैसे कह दूँ इस दुखी मन से कि मेरा भारत महान।
कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,
किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों में।
एक बार आकर देख कैसा,
ह्रदय विदारक मंजर हैं,
पसलियों से लग गयी हैं आंते,
खेत अभी भी बंजर हैं।
किसानो से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं,
बस ऱोज नये ख्वाबो की बात करते हैं,
पैर हों जिनके मिट्टी में, दोनों हाथ कुदाल पर रहते हैं,
सर्दी , गर्मी या फिर बारिश, सब कुछ ही वे सहते हैं,
आसमान पर नज़र हमेशा, वे आंधी तूफ़ां सब सहते हैं,
खेतों में हरियाली आये, दिन और रात लगे रहते हैं,
मेहनत कर वे अन्न उगाते, पेट सभी का भरते हैं,
वो है मसीहा मेहनत का, उसको किसान हम कहते हैं।
मैं किसान हूँ मुझे भरोसा हैं अपने जूनून पर,
निगाहे लगी हुई है आकाश के मानसून पर।
ऐ ख़ुदा बस एक ख़्वाब सच्चा दे दे,
अबकी बरस मानसून अच्छा दे दे।
हमने भी कितने पेड़ तोड़ दिए,
संसद की कुर्सियों में जोड़ दिए,
कुआँ बुझा दिए, नदियाँ सुखा दिए,
विकास की ताकत से कुदरत को झुका दिए।
कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफ़त,
जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं,
क्या खूब तरक्की कर रहा हैं अब देश देखिये,
खेतो में बिल्डर और सड़को पर किसान खड़े हैं।
क्यों ना सजा दी पेड़ काटने वाले शैतान को,
खुदा तूने सजा दे दी सीधे-साधे किसान को।
नही हुआ हैं अभी सवेरा,
पूरब की लाली पहचान,
चिडियों के उठने से पहले,
खाट छोड़ उठ गया किसान।
परिश्रम की मिशाल हैं,
जिस पर कर्जो के निशान हैं,
घर चलाने में खुद को मिटा दिया,
और कोई नही वह किसान हैं।
क्या दिखा नही वो खून तुम्हें,
जहाँ धरती पुत्र का अंत हुआ,
सच को ये सच नही मान रहा,
लो आँखों से अँधा भक्त हुआ।