हैप्पी महाराणा प्रताप जयंती | Maharana Pratap Jayanti Wishes
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। लेकिन उनकी जयंती हिन्दी तिथि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। उनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी ‘कीका’ नाम लेकर पुकारा करते थे। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
अपने कर्त्तव्य,और पुरे सृष्टि के कल्याण के लिए प्रयत्नरत मनुष्य को युग युगांतर तक स्मरण रखा जाता है।
अन्याय, अधर्म,आदि का विनाश करना पुरे मानव जाति का कर्तव्य है।
है धर्म हर हिन्दुस्तानी का, कि तेरे जैसा बने। चलना है अब तो उसी मार्ग, जो मार्ग दिखाया प्रताप ने॥
मनुष्य का गौरव और आत्मसम्मान उसकी सबसे बङी कमाई होती है।अतः सदा इनकी रक्षा करनी चाहिए।
हल्दीघाटी के युध्द ने मेरा सर्वस्व छीन लिया हो। पर मेरी गौरव और शान और बढा दिया।
जो सुख मे अतिप्रसन्न और विपत्ति मे डर के झुक जाते है, उन्हे ना सफलता मिलती है और न ही इतिहास मे जगह।
अगर सर्प से प्रेम रखोगे तो भी वो अपने स्वभाव के अनुसार डसेगाँ ही।
कष्ट, विपत्ती और संकट ये जीवन को मजबूत और अनुभवी बनाते है। इनसे डरना नही बल्कि प्रसन्नता पूर्वक इनसे जुझना चाहिए।
नित्य, अपने लक्ष्य, परिश्रम,और आत्मशक्ति को याद करने पर सफलता का मार्ग सरल हो जाता है।
एक शासक का पहला कर्तव्य अपने राज्य का गौरव और सम्मान बचाने का होता है।
अपनो से बङो के आगे झुक कर समस्त संसार को झुकाया जा सकता है।
फीका पड़ा था तेज़ सुरज का, जब माथा ऊँचा तु करता था। फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख तू खोला करता था॥
सत्य, परिश्रम, और संतोष सुखमय जीवन के साधन है। परन्तु अन्याय के प्रतिकार के लिए हिंसा भी आवश्यक है।
अत्यंत विकट परिस्तिथत मे भी झुक कर हार नही मानते। वो हार कर भी जीते होते है।
अपने और अपने परिवार के अलावा जो अपने राष्ट्र के बारे मे सोचे वही सच्चा नागरिक होता है।
अगर इरादा नेक और मजबूत है। तो मनुष्य कि पराजय नही विजय होती है।
सम्मानहीन मनुष्य एक मृत व्यक्ति के समान होता है।
अपने अच्छे समय मे अपने कर्म से इतने विश्वास पात्र बना लो कि बुरा वक्त आने पर वो उसे भी अच्छा बना दे।
मनुष्य अपने कठीन परिश्रम और कष्टो से ही अपने नाम को अमर कर सकता है।
अपनी कीमती जीवन को सुख और आराम कि जिन्दगी बनाकर कर नष्ट करने से बढिया है कि अपने राष्ट्र कि सेवा करो।
समय इतना बलवान होता है, कि एक राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है।
जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी। फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी॥
मातृभूमि और अपने माँ मे तुलना करना और अन्तर समझना निर्बल और मुर्खो का काम है।
ये संसार कर्मवीरो की ही सुनता है। अतः अपने कर्म के मार्ग पर अडिग और प्रशस्त रहो।
हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे। देख के उसकी शक्ति को, हर दुशमन उससे डरा करे॥
करता हुं नमन मै प्रताप को, जो वीरता का प्रतीक है। तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त, तु अखण्डता का प्रतीक है॥
धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।\nधन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने॥
चेतक पर चढ़ जिसने, भाला से दुश्मन संघारे थे…\nमातृ भूमि के खातिर , जंगल में कई साल गुजारे थे…
झुके नही वह मुगलोँ से, अनुबंधों को ठुकरा डाला…\nमातृ भूमि की भक्ति का, नया प्रतिमान बना डाला…
हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था…\nदेख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था…
बलिदान पर राणा के, भारत माँ ने, लाल देश का खोया था…\nवीर पुरुष के देहावसान पर, अकबर भी फुट-फुट कर रोया था…
भारत माँ का वीर सपूत, हर हिदुस्तानी को प्यारा हे…\nकुँअर प्रताप जी के चरणों में, सत सत नमन हमारा हे..
अपने कर्त्तव्य, और पुरे सृष्टि के कल्याण के लिए प्रयत्नरत मनुष्य को युग युगांतर तक स्मरण रखा जाता है।
अन्याय, अधर्म,आदि का विनाश करना पुरे मानव जाति का कर्त्तव्य है।
अगर इरादा नेक और मजबूत है। तो मनुष्य कि पराजय नही विजय होती है।
शत्रु सफल और शौर्यवान व्यक्ति के ही होते है।