Best Geeta Quotes in Hindi…. गीता कोट्स
गीता एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमें पूरी दुनिया की सच्चाई का वर्णन किया गया है। मनुष्य की हर समस्या और उसका समाधान गीता में दिया गया है, यह शास्त्र मनुष्य के हर प्रश्न और हर समस्या का समाधान है। गीता कोट्स सरल हिंदी में
अगर आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो अपनी रणनीति बदलिए, न कि लक्ष्य।
अपने अनिवार्य कार्य करो क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
अपने आप जो कुछ भी प्राप्त हो उसमें संतुष्ट रहने वाला, ईर्ष्या से रहित, सफलता और असफलता में समभाव वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म के बन्धनों से नहीं बंधता है।
अपने कर्तव्य का पालन करना जो की प्रकृति द्वारा निर्धारित किया हुआ हो, वह कोई पाप नहीं है।
अपने कर्म पर अपना दिल लगाएं न की उसके फल पर।
अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।
अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है
आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो अनुशाषित रहो, उठो।
आत्मा ना कभी जन्म लेती है और ना मरती ही है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
आपके सर्वलौकिक रूप का मुझे न प्रारंभ न मध्य न अंत दिखाई दे रहा है।
इंद्रियों की दुनिया में कल्पना सुखों की शुरुआत है और अंत भी, जो दुख को जन्म देता है।
इन्द्रियां शरीर से श्रेष्ठ कही जाती हैं इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है और आत्मा बुद्धि से भी अत्यंत श्रेष्ठ है।
इन्द्रियां, मन और बुद्धि काम के निवास स्थान कहे जाते हैं। यह काम इन्द्रियां, मन और बुद्धि को अपने वश में करके ज्ञान को ढककर मनुष्य को भटका देता है।
इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।
उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है क्योंकि वह ना कभी था ना कभी होगा जो वास्तविक है वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
एक उपहार तभी अच्छा और पवित्र लगता है, जब वह दिल से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाये और जब उपहार देने वाला व्यक्ति का दिल उस उपहार के बदले कुछ पाने की उम्मीद ना रखता हो।
ऐसा कुछ भी नहीं, चेतन या अचेतन जो मेरे बिना अस्तित्व मे हो सकता हो।
ऐसा कोई नहीं जिसने भी इस संसार मे अच्छा कर्म किया हो और उसका बुरा अंत हुआ हो चाहे इस काल में हो या आने वाले काल में।
कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम, या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।
कर्म उसे नहीं बांधता जिसने काम का त्याग कर दिया है।
कर्म मुझे बांधता नहीं क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।
कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है।
कर्म ही पूजा है।
काम, क्रोध और लोभ ये जीव को नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार हैं इसलिए इन तीनों का त्याग करना चाहिए।
किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
किसी दुसरे के जीवन के साथ पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है की हम अपने स्वयं के भाग्य के अनुसार अपूर्ण जियें।
केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है कर्मफल नहीं। इसलिए तुम कर्मफल की आसक्ति में ना फंसो तथा अपने कर्म का त्याग भी ना करो
केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है।
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है, तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
खाली हाथ आये और खाली हाथ वापस चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
चिंता से ही दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी दलदल को पार कर जाएगी उस समय तुम शास्त्र से सुने गए और सुनने योग्य वस्तुओं से भी वैराग्य प्राप्त करोगे।
जब यह मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है।
जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं।
जिन्हें वेद के मधुर संगीतमयी वाणी से प्रेम है, उनके लिए वेदों का भोग ही सब कुछ है।
जिस समय इस देह में तथा अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिए कि सत्त्वगुण बढ़ा है।
जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल, युवा और वृद्ध शरीर को प्राप्त करती है। वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद भी नया शरीर प्राप्त करती है। इसलिए वीर पुरुष को मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए।
जैसे जल में तैरती नाव को तूफान उसे अपने लक्ष्य से दूर ले जाता है वैसे ही इन्द्रिय सुख मनुष्य को गलत रास्ते की ओर ले जाता है।
जैसे मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को उतारकर दूसरे नए वस्त्र धारण करता है वैसे ही जीव मृत्यु के बाद अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर प्राप्त करता है।
जो आशा रहित है जिसके मन और इन्द्रियां वश में हैं जिसने सब प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है ऐसा मनुष्य शरीर से कर्म करते हुए भी पाप को प्राप्त नहीं होता और कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है।
जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें।
जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है।
जो कुछ भी तू करता है उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्ति का आनंद अनुभव करेगा।
जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
जो चीज हमारे हाथ में नहीं है उसके विषय में चिंता करके कोई फायदा नहीं।
जो ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है वही सही मायने में देखता है.
जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है।
जो भी मनुष्य अपने जीवन अध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्पों में स्थिर है, वह सामान रूप से संकटों के आकर्मण को सहन कर सकते हैं, और निश्चित रूप से यह व्यक्ति खुशियाँ और मुक्ति पाने का पात्र है।
जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।
जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है।
जो मनुष्य बिना आलोचना किये श्रद्धापूर्वक मेरे उपदेश का सदा पालन करते हैं वे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
जो मनुष्य सब कामनाओं तो त्यागकर इच्छा रहित, ममता रहित तथा अहंकार रहित होकर विचरण करता है वही शांति प्राप्त करता है।
जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है।
जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है।
जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म। जो भगवान के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति।
जो व्यक्ति संदेह करता है उसे कही भी ख़ुशीनहीं मिलती
जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का अंत होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है।
जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।
जो हुआ, वह अच्छा हुआ जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा तुम भूतकाल का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए।
तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त रहता है।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
दुःख से जिसका मन परेशान नहीं होता सुख की जिसको आकांक्षा नहीं होती तथा जिसके मन में राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं ऐसा मुनि आत्मज्ञानी कहलाता है।
न मैं यह शरीर हूँ और न यह शरीर मेरा है, मैं ज्ञानस्वरुप हूँ, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला जीवन मुक्ति को प्राप्त करता है। वह किये हुए (भूतकाल) और न किये हुए (भविष्य के) कर्मों का स्मरण नहीं करता है।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
पृथ्वी में जिस प्रकार मौसम में परिवर्तन आता है उसी प्रकार जीवन में भी सुख-दुख आता जाता रहता है।
प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं।
प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता।
फल की अभिलाषा छोड़ कर कर्म करने वाला पुरूष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।
बुद्धिमान को अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा/ लगाव छोड़ देना चाहिए।
बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।
बुरे कर्म करने वाले सबसे नीच व्यक्ति जो गलत प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी।
भगवान या परमात्मा की शांति उनके साथ होती है जिसके मन और आत्मा में एकता अथवा सामंजस्य हो, जो इच्छा और क्रोध से मुक्त हो, जो अपने स्वयं अथवा खुद के आत्मा को सही मायने में जानते हों।
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हें बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
मनुष्य कर्म को त्यागकर कर्म के बंधन से मुक्त नहीं होता। केवल कर्म के त्याग मात्र से ही सिद्धि प्राप्त नहीं होती। कोई भी मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता।
मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है।
मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ।
मैं आत्मा हूँ, जो सभी प्राणियों के हृदय/दिल से बंधा हुआ हूँ। मैं साथ ही शुरुआत हूँ, मध्य हूँ और समाप्त भी हूँ सभी प्राणियों का।
मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।
मैं ऊष्मा देता हूँ मैं वर्षा करता हूँ मैं वर्षा रोकता भी हूँ मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी मैं ही हूँ।
मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ।
मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ।
मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ।
मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ।
मैं समय हूँ, सबका नाशक मैं आया हूँ दुनिया का उपभोग करने के लिए।
मैं ही सबकी उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही जगत का होता है।
यदि कोई बड़े से बड़ा दुराचारी भी अनन्य भक्ति भाव से मुझे भजता है तो उसे भी साधु ही मानना चाहिए और वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है तथा परम शांति को प्राप्त होता है।
यद्यपि मैं इस तंत्र का रचयिता हूँ लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं अनंत हूँ।
यह बड़े ही शोक की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठते हैं तथा राज्य और सुख के लोभ से अपने स्वजनों का नाश करने को तैयार हैं।
लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है वह मेरे धाम को प्राप्त होता है – इसमें कोई संशय नहीं है।
वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है मैं और मेरा की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांति प्राप्त होती है।
विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है। क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है सम्मोहन से मन भ्रष्ट हो जाता है। मन नष्ट होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का पतन होता है।
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।
शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते अग्नि इसको जला नहीं सकती जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
शांति से सभी दुःखों का अंत हो जाता है और शांतचित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।
श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करता है, दूसरे लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो प्रमाण देता है, जनसमुदाय उसी का अनुसरण करता है।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।
सन्निहित आत्मा का अस्तित्व अविनाशी और अनन्त हैं, केवल भौतिक शरीर तथ्यात्मक रूप से खराब है इसलिए हे अर्जुन! डटे रहो।
सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, शोक मत करो।
सभी कार्य ध्यान से करो करुणा द्वारा निर्देशित किए हुये।
सभी प्राणी मेरे लिए समान हैं न मेरा कोई अप्रिय है और न प्रिय परन्तु जो श्रद्धा और प्रेम से मेरी उपासना करते हैं वे मेरे समीप रहते हैं और मैं भी उनके निकट रहता हूँ।
सभी वेदों में से मैं साम वेद हूँ, सभी देवों में से मैं इंद्र हूँ, सभी समझ और भावनाओं में से मैं मन हूँ, सभी जीवित प्राणियों में मैं चेतना हूँ।
सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बढ़कर है।
सुख – दुःख, लाभ – हानि और जीत – हार की चिंता ना करके मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार कर्तव्य – कर्म करना चाहिए। ऐसे भाव से कर्म करने पर मनुष्य को पाप नहीं लगता।
स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है।
स्वार्थ से भरा कार्य इस दुनिया को क़ैद मे रख देगा अपने जीवन में स्वार्थ को दूर रखे बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के।
स्वार्थ से भरा हुआ कार्य इस दुनिया को कैद में रख देगा। अपने जीवन से स्वार्थ को दूर रखें, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के।
हम जो देखते हैं वो हम हैं और हम जो हैं हम उसी वस्तु को निहारते हैं इसलिए जीवन मे हमेशा अच्छी और सकारत्मक चीज़ो को देखें और सोचें।
हर काम का फल मिलता है – “इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।”
हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।
हे अर्जुन! केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसी जंग लड़ने का अवसर पाते हैं जो स्वर्ग के द्वार के सामान है।
हे अर्जुन! जब जब संसार में धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब – तब अच्छे लोगों की रक्षा, दुष्टों का पतन, और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं हर युग में अवतरित होता हूँ।
हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को जला देती है वैसे ही ज्ञानरूपी अग्नि कर्म के सारे बंधनों को भस्म कर देती है।
हे अर्जुन! जो भक्त जिस किसी भी मनोकामना से मेरी पूजा करते हैं मैं उनकी मनोकामना की पूर्ति करता हूँ।
हे अर्जुन! तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हो लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए उनके लिए शोक करते हो। मृत या जीवित, ज्ञानी किसी के लिए शोक नहीं करते।
हे अर्जुन! तुम यह निश्चयपूर्वक सत्य मानो कि मेरे भक्त का कभी भी विनाश या पतन नहीं होता है।
हे अर्जुन! तुम सदा मेरा स्मरण करो और अपना कर्तव्य करो। इस तरह मुझमें अर्पण किये मन और बुद्धि से युक्त होकर निःसंदेह तुम मुझको ही प्राप्त होगे।
हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं इसे जो मनुष्य भली भांति जान लेता है उसका मरने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता तथा वह मेरे लोक, परमधाम को प्राप्त होता है।
हे अर्जुन! मैं भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता।
हे अर्जुन! विषम परिस्थितियों में कायरता को प्राप्त करना श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। ना तो ये स्वर्ग प्राप्ति का साधन है और ना ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी।
हे अर्जुन! सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मृत्यु के बाद फिर अप्रकट हो जायेंगे। केवल जन्म और मृत्यु के बीच प्रकट दिखते हैं, फिर इसमें शोक करने की क्या बात है?
हे अर्जुन! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं। मुझे याद हैं लेकिन तुम्हें नहीं।
हे कुंतीनंदन! संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी मनुष्य के मन को भी चंचल इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं। जिसकी इन्द्रियां वश में होती हैं उसकी बुद्धि स्थिर होती है।